कविता
जीवन रूपी धारा प्रकृति,
प्रकृति ही अनमोल उपहार,
प्रकृति से ही मानव-जीवन,
प्रकृति में ही सुन्दर वास।
प्रकृति ने धरा पर देखो,
हरियाली की मनमोहक छटा फैलाई,
रंग-बिरंगे प्यारे फूल,
खिले हैं सारे उपवन देखो,
मोह लेते हैं सबका मन,
पानी का बहता समुन्दर,
रेतिला-रेगिस्तान कहीं पर,
लेकिन मानव स्वार्थी होकर,
करना तू इसका नुकसान,
आधुनिकता की होड़ में,
मानव इतना खोया तू,
बचाया नहीं हमने इसको तो,
धर लेगी ये रुप विकराल,
जीवन-रूपी धारा प्रकृति,
प्रकृति ही अनमोल उपहार।
प्रकृति में ही मानव-जीवन,
प्रकृति से ही सुन्दर वास।
,@डॉ विजय लक्ष्मी
बहुत अच्छा लेखन hai