कविता:-
पिता लौट आते हैं....
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पिता हर रोज़ आते हैं
सूरज की पहली किरण के साथ
मेरे उठने के पहले
मेरे उजाले के लिए
पिता आते हैं
तपती धूप में
हवा के झोकों के साथ
और पोछ जाते हैं
मेरे माथे का पसीना
आकाश में मंडराते
हुंकार भरते आते हैं पिता
बादलों के साथ
जब पड़ती हैं दरारें
मेरे मन के खेत में
बरस जाते हैं बारिश की बूँद में
और तर-बतर हो जाता हूँ मै
जब खेत मे लहलहाती है फसल
तब पुरवा के रथ पर सवार हो
अटखेलियाँ करते आते हैं पिता
निहारते हैं खेत को
गौरैया के चोंच से
चूम जाते हैं दाने को
भाई के बाजार से लौटते ही
लौट आते हैं पिता
रोज़मर्रा की चीजों के साथ ही
पिता हर रोज़ आते हैं
माँ की आँखों में
उम्मीद बनकर
------मृत्युंजय उपाध्याय 'नवल'
गोरखपुर
मोबाइल-9936338070
महत्व बताती है आपकी यह अद्भुत रचना....
अद्भुत
पिता है तो बाजार के सब खिलौने अपने हैं।।
पिता है तो बाजार के सब खिलौने अपने हैं।।
बहुत खूब अनुज
हर्दिक बधाई
सुख मे दुख में पिता का हाथ सदैव हमारे हाथों को थामे रहता है
माता और पिता का स्थान संसार में सर्वोपरी है।
ऐसे ही लिखते रहिये।
Immense value of shadow of Father in life.
👌