हमारे अंदर भी है रावण
क्यो पुतले जलाते हो
वो फिर भी मर्यादित था
खुद अपने अंदर झाक के देखो
सीता से केवल आग्रह करता रहा
मिथ्या भय से डराता रहा
हम प्रतिपल पाप करते है
अहंकारी बन विष उगलते है
हमारे अंदर भी रावण है......
नन्ही कली कुचली जाती है
बिन जन्मी कोख में मारी जाती
फिर भी मनुज शर्म नही आती
झूठ,फरेब का जीवन जीते
व्यक्तित्त्व चरित्र बिना रीते
हमारे अंदर भी रावण है.....
संस्कृति को तार तार कर डाला
बुजर्गो को जीते जी मार डाला
करते सदैव सुख अभिलाषा
जीवन की मानी यही परिभाषा
हमारे अंदर भी रावण है.....
सच तो है पुतला हम पर हँसता है
उसको पता है वो जिंदा है
करोड़ो लोगो के मन मे
अंतर्मन के रावण का अंत करे
बुराई को हमसे स्वतंत्र करे
---Dr Lokesh Sharma
Assistant professor
Mahila Mahavidyalaya Bandikui
sharma.lokesh696@gmail.com