कविता
"मेरे प्रियतम"
बारिश हुई और
बूंदे पड़ी
मन में छुपा यह
कौन है?
चंचल है मन
चितवन वदन
चित्त को लुभाता
यह कौन है?
सखी! वह मेरा
केवल मेरा
प्राणों से प्रिय
मेरा प्रियतम है,
उपवन में बोले
जो पपीहा
गुलशन में नाचे
वो मोर है,
घन-घन ये बदरा
कि घटा
बिजुरी ये चमके
किस ओर है,
इन्द्रधनुष में
रंग है जैसा
ठीक वैसा ही
मेरा मन है,
सखी!
प्रिय से मिलन
होता तभी है
जब बारिश बरसती
तेज है,
बोलो सखी!
तुम भी बताओ
तुम्हारे प्रियतम
किस ओर है?
बारिश बरसाती है
तेज सखी!
फिर तुम्हारा चित्त
क्यों मौन हैं?
इतनी दुःखी हो
लग रहा है
तुम्हारे प्रियतम
कहीं और हैं,
क्यों न उन्हें तुम
संदेश भेजो
इस बरसते
मेघ से,
जैसे जुड़ा है
चित्त मेरा
तुम भी जुड़ों
अपने प्रियतम से,
जब भी बरसात
है ये बारिश
चित्त को लुभाता
ये कौन है?
सखी! वह मेरा
केवल मेरा
प्राणों से प्रिय
मेरा प्रियतम है।
अकिल शेख़
बलिया, उत्तर प्रदेश।
स्वरचित एवं मौलिक
हमे आपार खुशी है कि अब आपने अपने अंदर के शब्दों को मंच दिया है अल्लाह से दुआ है कि इसी तरह आप बेहतर करिये । 😊😊😊
मित्र एक बात बताओ इतने दिन हमलोग साथ रहे परन्तु कभी आपने स्त्री मन की बात ही नही की , किंतु आज आपने दो स्त्रियों की मनो स्थिति को इतने मधुर और रसताल शब्दो मे पिरोया कैसे?
इक्ष्वाकु सहपाठी को अपनी मन की गाथा ज़रूर बताएं ।
..........बारिश के मौसम में प्रेम सन्दर्भित कविता अमूल्य है,अद्वितीय है।मन को प्रेम के सागर में समाहित होने को उत्सुकतावश कुरेदने वाली है ये कविता।
इनकी प्रियतमा कहि और है ....!
मित्र हम उमीद करते है की जल्द ही आप एक और कविता प्रस्तत करेगे
💐💐💐
आकिल तेरी कविता भी दिल को छूती है वैसे।
अत्यंत शोभनीय प्रयास मित्र।