लघुकथा
यह होली है भाई
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इंगलैंड में बैरिस्टरी की पढ़ाई करने वाला 28 वर्षीय प्रेम वर्मा बसंत का मौसम आते हीं मन ही मन खुश था कि इस बार वह होली में अपने देश भारत जायेगा । भारत में वह बिहार के गया जिले के तरवाँ ग्राम जायेगा,जहाँ वह अपने बुढे माँ-बाप,दादा-दादी एवं अपने दोस्तों से मिलेगा और जमकर होली खेलेगा,पास पड़ोस की भौजाईयों को रंग से सराबोर करेगा।
सबसे हिल मिलकर रहनेवाला,खुश मिजाज प्रेम वर्मा मन ही मन यह सब बातें सोच ही रहा था कि हमवतन आफताब राणा ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुये कहा कि "प्रेम भाई इस बार की होली में घर नहीं जाना है क्या?"
प्रेम ने आफताब की ओर देखते हुए कहा "क्यों नहीं।भला होली,दशहरा,ईद भूलने वाली पर्व है।"
प्रेम ने आफताब की ओर देखते हुये कहा कि "अपने वतन में पर्व मनाने की अपनी खुबसूरती है।"
हम कल ही पाँच साल बाद फ्लाईट से दिल्ली जा रहे हैं। दिल्ली से राजधानी एक्सप्रेस से गया और वहाँ से बस से अपना गाँव। गाँव में होली में खुब मस्ती करेंगे,अपने दोस्त मेराज को भी नहीं छोड़ेंगे। उसे भी रंग से सराबोर कर देंगे, आखिर देखते हैं हमें रोकता कौन है।
समय बीतते देर नहीं लगी ।आखिरकार होली का दिन आ गया।
होली के दिन प्रेम अपने गाँव में अपने दोस्तों संग खुब होली खेला और पास पड़ोस की ग्रामीण भौजाइयों को रंग से सराबोर कर दिया।
अब वह अपने दोस्त मेराज के घर की ओर बढ़ रहा था।
जैसे ही वह मेराज के भाई भतीजा को वह अबीर लगाया,वैसे हीँ मेराज के अबू ने प्रेम को डाँटते हुये कहा कि "तुम्हें दिखाई नहीं देता है कि हमलोग रंग नहीं लगवाते हैं।"
प्रेम ने मेराज के अबू को समझाते हुये कहा कि "यह महज रंगो का त्योहार नहीं है,यह ईद की तरह हर्ष,उल्लास,प्रेम व भाईचारे का पर्व है ।" "जब आपलोग ईद मे हमलोगों से गले मिले थे हममें से किसी ने रोका टोका तो नहीं था। आपलोग इतने कट्टर नहीं बनिये। इंसान बनिये ,प्रेम व भाई चारे को जिन्दा रखिये।"
प्रेम ने मेराज के अबू को समझाते हुये कहा कि "रंग की यह खासियत होती है कि यह हिन्दु,मुस्लिम,सिख व इसाई में भेदभाव नहीं करता है सबों को समान नजर से देखता है।"
प्रेम ने मेराज के अबू व उसके भाई को समझाते हुये कहा कि "यह होली है भाई,यह हिन्दु मुस्लिम में भेदभाव नहीं करता है।
यह नफरत नहीं सभी को प्यार सिखाता है।"
प्रेम की प्रेम से भरी बातों को सुनकर मेराज के अबू एवं उसके भाईयों ने प्रेम से कहा कि" हमलोगों को माफ कर दो भाई,कुछ देर के लिए हमलोग अपनी इंसानियत,प्रेम एवं भाईचारे से भटक गये थे एवं भूल गये थे कि यह यह प्रेम एवं भाईचारे का त्योहार है। तुम्हें जितना मन चाहे हमलोगों को रंग-अबीर रंगा लो।"
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अरविन्द अकेला
रंगों के महापर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (30-3-21) को "कली केसरी पिचकारी"(चर्चा अंक-4021) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा