प्रीत का रंग
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चटख रंग प्रीत का पिया,
रंग वही मुझ पर डार,
छूटे ना जो बरस बरस,
रहने दो यह बाजारु गुलाल।
जिस रंग में रंगी थी राधा,
खोई थी अपने होशोहवास,
बरसाने तक भीग गया था,
उडी थी मथुरा से ऐसी गुलाल।
सदियां बीती रंग ना उतरी,
भींगी थी ऐसी राधा गोरी,
याद करते हैैं अब भी सब,
कान्हा संग राधा की होरी।
इश्किया रंग से खेलो यह होली
रोम रोम हो जाए सिन्दूरी
सरस रस पूरित चितव चकोरी ,
अंग अंग से फूटी स्वर होली।
दृष्टि स्नेह राजीव नयना,
निहाल होऊं जो देखे सजना,
मन ओत प्रोत गुलाबी लाल,
भीगा तन मन में हुलास,
रंग वही मुझ पर डार।
सुषमा सिंह
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(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं मौलिक)
रंगों के महापर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (30-3-21) को "कली केसरी पिचकारी"(चर्चा अंक-4021) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा