विधा -लघुकथा
शीर्षक--बडे़ भैया और उनका पेड़
हलो! हाँ भाई, अब कैसी तबियत है। ठीक है। ऐसा कहकर भैया ने फोन बंद कर दिया। पिछले कई दिनों से बड़े भैया अस्पताल में भर्ती है। ये करोना की ऐसी लहर आई कि कोई घर नहीं छोड़ा। आठ भाई -बहिनों में भैया सबसे बड़े है। सबकी चिन्ता करते हैं। अब महीने भर होने को आए अभी तक अस्पताल वाले छुट्टी नहीं दे रहे हैं। जब भी भैया की छुट्टी की बात करो तो कहते है कि करोना की रिपोर्ट तो नेगेटिव है पर आॅक्सीजन का स्तर नहीं सुधरा है।जब तक आॅक्सीजन स्तर नहीं सुधरेगा तब तक घर ले जाने में खतरा है। भैया के स्वास्थ्य की चिन्ता कर चुप बैठ जाते कि जब भैया पूरी तरह स्वस्थ हो जायेंगे तब ही उन्हें घर लेकर आयेंगे। इसी बीच छोटे भाई को करोना हो गया ,उसे भी अस्पताल में भर्ती करना पड़ा पर भैया को ये बात नहीं बताई। होनी को कौन डाल सकता है। इसी बीच करोना से मझली भाभी जी का देहान्त हो गया। ये समाचार भी उन तक नहीं पहुँचने दिया गया। उन तक क्या किसी को भी नहीं बताया क्योंकि भैया का अस्पताल में मनोरंजन का एकमात्र सहारा मोबाइल ही था। कहीं वो ये समाचार सोशल मीडिया पर न पढ़ ले, नहीं तो चिन्ता में उनका आॅक्सीजन स्तर घट जायेगा।
अचानक बड़े भैया का फोन आया कि अब मुझे घर ले जाओ यहाँ पर रहा तो कभी मेरा आॅक्सीजन लेवल नहीं सुधरेगा। मैं जब अपने गाँव आ जाऊंँगा तो ठीक हो जाऊंँगा ।अस्पताल वाले छुट्टी नहीं दे रहे थे तो हमने अपनी जिम्मेदारी पर उन्हें घर लेकर आ गए ।भैया घर आए जिस वृक्ष को उन्होंने लगाया था उस वृक्ष के नीचे वह जाकर बैठ जाते। उसकी ठंडी हवा से उनका मन तृप्त हो गया और ऑक्सीजन का स्तर अप्रत्याशित रूप से बढ़ गया। जो अस्पताल में महीने भर में नहीं हो पाया गाँव में एक दिन में हो गया। गाँव में जिस पौधे को लगाकर प्यार से पाला आज उसी वृक्ष ने उनको जीवन दिया।
मीना जैन दुष्यंत