श्रावनी छटा
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हरी चूड़ियों से भरी कलाई,
रंगे हिना हथेली टहटहायी।
सजी संवरी बैठी राधा,
आओ कान्ह ऋतु सावन आयी।।
बागों में पड़ गये झूले,
कूहके पिकी पागल बौरायी।
घनघोर घटा श्रावनी छटा,
बेकल मनवां तेरी याद सतायी।।
सखियों के साजन घर आए,
स्वरलहरी कजरी मन भाए।
मैं विरहिन पिया राह तकूं,
प्रियतम तेरी याद रुलाये।।
काटे नहीं कटती रतिया,
अंखियां बसी मोहिनी सुरतिया।
बिन जल मीन तडपूं सांवरिया,
अगन बढ़ाए सरसराती पुरवइया।।
सुषमा सिंह
औरंगाबाद
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(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं मौलिक)
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'