इक चेहरे के कितने रंग
इक चेहरे के कितने रंग,
देख गिरगिट रह गयी दंग।
मुॅंह में राम बगल में छूरी,
बना कर चलो इनसे दूरी।।
रुप रंग संवार सभी,
मन ही मन रहे फूल।
बिगड़ी ना कभी संवारते,
कर रहे भयंकर भूल।।
जिज्ञासाओं का विस्तार,
खोलता संभावनाओं के द्वार।
अनन्त सिद्धियाॅं लगती हाथ,
प्रभु कृपा होती अपार।।
अध्यात्म का एक दिया,
अन्तर में अपने उतार।
रौशनी से भरेंगी राहें,
पग - पग देख चमत्कार।।
उपलब्धियाॅं जग की तमाम,
कर ले तू, अपने नाम।
ईश बंदगी ना भूलना कभी,
कृपा सदा करेंगे राम।।
वेदना से व्यथित हृदय,
कर ना सका चित्कार।
हुए दृग के कोर सजल,
बही अंसुवन की धार।।
सुषमा सिंह
औरंगाबाद
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