भगवान दत्तात्रेय
ऋषि कर्दम, देवहूति की कन्या अनुसुइया,
महर्षि अत्रि से ब्याह रचाये।
पुत्र रुप में प्रभु को पाने,
वे नित श्रद्धा से प्रभु का ध्यान लगाएं।।
एक दिवस त्रिदेव ऋषि रुप में,
अत्रि के घर आये।
अपनी मीठी बातों से माँ,
अनुसुइया को उलझाये।।
ध्यान लगा कर माँ ने देख लिया,
रही ना कोई शंका शेष।
ऋषि नही है ये अतिथि,
है ये स्वयं ब्रम्हा, विष्णु, महेश।।
संतान मोह से व्याकुल माँ ने,
कमंडल लियो उठाय।
अभिसिंचित जल छिड़क, ऋषियों को,
नन्हा बालक दियो बनाय।।
तीनों नन्हे शिशुओं को,
आँचल में लियो छिपाये।
रो-रोकर के माँ अनुसुइया,
पुत्रों पर स्नेह लुटाएं।।
महर्षि अत्रि घर को जब आये,
नन्हे तीन बालक देख चकराये।
हाव भाव से बात समझ,
सारा हाल माँ ने महर्षि को दियो बताये।।
अत्यंत प्रेम से माँ और अत्रि,
त्रिदेवों के पांव पखाये।
इसी क्षण त्रिदेवियां, स्वामी को ढूंढते,
महर्षि के घर आये।।
बाल रुप में स्वामी को देख,
त्रिदेवियां घबराएं।
पहले जैसा बना दे इनको,
माँ अनुसुइया से विनती मनाये।।
त्रिदेवियों की मान विनती,
माँ ने शिशुओं को त्रिदेव दियो बनाय।
माँ अनुसुइया की भक्ति से खुश,
त्रिदेव मुस्कुराये।।
निज-निज अंश से युक्त बालक दत्तात्रेय,
माँ अनुसुइया को वर दे जाएं।
प्रभु दत्तात्रेय त्रिदेव के रुप से आये,
त्रिलोक में माँ अनुसुइया माता ही कहलाए।।
शिखा गोस्वामी "निहारिका"
मारो, छ्त्तीसगढ़