समाधान ढूंढने होंगे
देश प्रेम स्वच्छता की आदत और एक स्वस्थ सोच,
शिक्षा में क्रांति आवश्यक जो नैतिकता को दे ओज।
सुविधासम्पन्न औलादें कर रहीं अनाज की बरबादी,
वहीं गुज़र बसर मुश्किल हुई भूखी चौथाई आबादी।
फोन से मन हटता नहीं दिन भर फोटो मैसेज कॉल,
मुखिया भी न बच सके सपरिवार मानसिक फॉल।
राजनीति के कूटनीतिक खेल में जातिवाद गहराया,
सफलता क्यों न चूमे कदम मुफ्त अनाज बँटवाया।
मानसिक स्वास्थ्य की किसे पड़ी कर्मसिद्धान्त छूटा,
अस्मत को बर्बाद किया निर्भया को नोच नोच लूटा।
बस कार मोटर काला धुआँ बढ़ता जाए प्रदूषण,
खाँस खाँस अधमरे हुए सब घटता जाए जनजीवन।
दिखावे का आवरण चढ़ा निज प्रशंसा बार बार,
संयमित जीवन जीने वाले सहज छोड़ते हैं घर बार।
भौतिकतावादी संसार में क्यों बेवजह जश्न मनाना,
शोर शराबा और भ्रम में जीना अच्छा नहीं बहाना।
पैसा पैसा हाय पैसा सुख चैन की समस्या विकट,
चोरी का भय धड़कन बढ़ाए रहे अनिद्रा का संकट।
साइलेंट एब्यूज़ की मार से बुजुर्ग घर घर उपेक्षित,
कठिनाइयाँ परिष्कार के अवसर पुत्र यदि सुशिक्षित।
मौन की आध्यात्मिक गूँज है भक्ति की स्वीकारोक्ति,
साधना से सिद्धि मिले यदि प्रबल हो इच्छा शक्ति।
प्रसन्नता स्वभाव का अंग हो जाए क्रोधभाव हो लुप्त,
अहंकार के विसर्जन से संभव मन सम्मोह विलुप्त।
अंतरात्मा की आवाज सुनो अशान्ति उन्मूलित होगी,
विश्वास की नींव जब गहरी अनिवार्यता सीमित होगी।
स्वयं को माफ करना सीखो बदलो अपना नज़रिया,
आत्ममंथन से अवबोध करो सुबह शाम दुपहरिया।
चेहरे पर चेहरा आत्ममुग्धता का आवरण हटाओ ना, एक बार भारत की धरती पर कबीर फिर आओ ना।
रंजना श्रीवास्तव
नागपुर महाराष्ट्र
© मौलिक स्वरचित